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Avnish Jain | May 16, 2023 | Editorial
कैसी अभिव्यक्ति , कैसी स्वतंत्रता
समूचे विश्व ने कुछ दिन पहले ही ‘प्रेस स्वतंत्रता दिवस’ मनाया। इस स्वतंत्रता के पीछे मीडिया की क्या भावना है, जनता की क्या भावना है और सत्ता पक्ष की मंशा कैसी दिखाई पड़ती है? इन तीनों दृष्टियों का किसी एक बिन्दु पर संगम होगा, तभी स्वतंत्रता का यह स्वरूप स्थायीभाव में दिखाई देगा। आज तो कहावत के अनुसार ही तीन-तेरह हो रहे हैं। यहां तक कि लोकतंत्र के तीनो पायों ने मिलकर मीडिया के रूप में चैथा पाया और सृजित कर दिया, जो संविधन में था ही नहीं और है भी नहीं। तब इस सरकारी पाये की स्वतंत्रता के अर्थ कैसे परिभाषित किए जा सकेंगे और कौन करेगा?
समय के साथ बदलाव कैसे आता है, प्रेस स्वतंत्रता की अवधरणा एक बड़ा प्रमाण है। जब यह कानून बना होगा, तब प्रेस का स्वरूप क्या था, इसकी भूमिका क्या थी, प्रकाशक का उद्देश्य क्या था? तब न टीवी था, न इंटरनेट, न सोशल मीडिया था और न ही डिजिटल माध्यम। आज पे्रस तो स्वयं बहुत पीछे छूटता जा रहा है। अब तो अस्तित्व की भी चुनौतियां दिखाई पड़ने लगीं है। आर्टिफिशियल इण्टेलिजेंस का धुआँ उठने लगा है। लपटें उठने वाली हैं। ठप हो जाएगी सारी समाज व्यवस्था। व्यक्ति अकेला पड़ जाएगा, खो जाएगा तकनीक में। ऐसे में प्रेस को, अखबार को, याद रख पाना भी उसके लिए चुनौती होगी। कम से कम विकसित देशों में तो उखड़ सकता है। भारत अकेला भिन्न राष्ट्र है।
जब विश्व में रंगीन टीवी आया था, एक भूचाल दिखाई दिया था। मैगजीन्स का बाजार एकाएक सिमट गया था, अखबार भी हिले थे। शिक्षित व उन्नत अर्थव्यवस्था वाले पाश्चात्य देशों में पाठक की प्रतिक्रिया भिन्न होती है। वहां समाज व्यवस्था भी भिन्न है, व्यक्ति अकेला, स्वयं के लिए जीता है। वहां तकनीक की पकड़ में आकर बाहर निकल पाना संभव नहीं है। तकनीक सम्पूर्ण देश को पिरोकर चलती है। आमजन भ्रष्ट नहीं है, नकद में लेन-देन नहीं होता। हमारे यहां तो चोर, भ्रष्टाचारी व्यवस्था के बाहर ही जीते हैं।
भारत में भी तकनीक उसी गति से आती है, जिस गति से पाश्चात्य देशों में आती है, किन्तु देश का छोटा सा हिस्सा इससे प्रभावित होता है। इसका मुंह भी पश्चिम की तरफ होता है। यह वर्ग भारत का प्रतिनिधि वर्ग नहीं होता। देश की बड़ी आबादी गरीबी रेखा से नीचे जीवन बिताने को मजबूर है। ग्रामीण क्षेत्रों में शिक्षा का अभाव है और बढ़ती आबादी के बीच अवैध् आव्रजन (घुसपैठ) जैसी समस्याओं का ताण्डव देश को घेरे हुए हैं। शिक्षा या तो मिल ही नहीं पाती और मिलती है तो बेरोजगारी ही बढ़ाती है। दूसरी ओर अति शिक्षित और समृद्ध लोग देश छोड़ना चाहते हैं। ऐसे में प्रश्न स्वतः ही उठता है-प्रेस के भविष्य का।